एक भुतही प्रेम कथा


  एक भुतही प्रेम कथा

मेरी मां के कथनानुसार, जो कहानी मैं आपको सुनाने जा रहा हूं, सर्वथा सत्य है।

आज से लगभग सौ साल पहले भारत के किसी गांव में एक युवा किसान दम्पति और किसान की मां रहते थे। दुर्भाग्यवश एक दुर्घटना में किसान की मृत्यु हो गई। किसान की पत्नी रोज शुबह जल्दी उठ कर चक्की से आटा पीसती थी। किसान की मां को बहू को इतना सारा काम करते हुए देखते बडा कष्ट होता था। बहू ने कहा, ''मां,  मुझे तो कुछ भी नहीं करना पडता। वे आ जाते हैं और कहते हैं, चल पिसादें। सारा जोर वह लगाते हैं, मैं तो केवल मूठ पर हाथ लगाए रखती हूं। सवेरा होने के पहले ही चले जाते हैं।'' मां कुछ ज्यादा नहीं बोली, बस अच्छा कह कर चुप हो गई। दूसरे दिन मां छिप के बेटे के आने का इन्तजार करती रही। जब किसान का भूत चक्की पिसा कर उठ के जाने वाला था, मां ने झपट कर पीछे से उसकी चोटी काट ली। किसान वगैर चोटी के उडने में असमर्थ था। क्या करता, फिर से रह कर खेती बाडी क़रने लगा। उसके दो बच्चे भी हुए, एक लडक़ा और एक लडक़ी।

इस बात को कई साल हो गए और अब किसान की लडक़ी की शादी होने वाली थी। आंगन में मंडप लगाया गया और फेरे होने वाले थे। किसान ने अपनी मां से कहा, ''मां, आज तो मुझे मेरी चोटी दे दे जिससे बिटिया की शादी में जी भर कर नाच लूं।'' यहीं पर बुढिया चूक गई। उसने चोटी लाकर बेटे के हाथ में दी। चोटी लेकर किसान खूब नाचा और मंडप के बीच से हवा बन कर चिडिया की तरह फुर्र से उड क़र निकल गया। वह फिर कभी लौट कर नहीं आया।आज तक उस किसान का परिवार भुतहा कहलाता है।

- लक्ष्मीनारायण गुप्त

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